सिर घुँघराले लट,
तन पीतांबर पट,
बहुत है नटखट,
साँवरा साँवरिया।
मंत्र मुक्त होता कवि,
जाता बलिहारी रवि,
मन को लुभाती छवि,
होंठों पे बाँसुरिया।
जाता पनघट पर,
ग्वाल-बाल मिलकर,
गोपियों की छिपकर,
फोड़ता गगरिया।
सखी संग राधा रानी,
जब लाने जाती पानी,
करता है मनमानी,
दिन दुपहरिया।
जैनेन्द्र प्रसाद’रवि’
मध्य वि. बख्तियारपुर, पटना
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