हे सिद्धिदात्री,हे मातृशक्ति
करता रहूं मैं,अविरल भक्ति।
तिमिर अज्ञानता को नष्ट करो
सद्बुद्धि,सद्भाव ज्ञान भरो।
इतनी सी माँ दया करो
सुनलो पुकार इस भक्त की।
हे सिद्धिदात्री,हे मातृशक्ति
करता रहूं मैं,अविरल भक्ति।
ममता की साक्षात मूर्ति हो
क्लेश,द्वेष,तम हरती हो।
जो भी आता आपके दर
झोलियाँ सबकी भरती हो।
कष्ट हरो माँ इस सृष्टि की
जरूरत है जग को आपके दया दृष्टि की।
हे सिद्धिदात्री,हे मातृशक्ति
करता रहूं मैं अविरल भक्ति।
जो भी आपके दर पर आया
बिन मांगे वो सबकुछ पाया।
जो भी ज्योत जलाए आपके दरबार
दूर हुआ जीवन का हर अंधकार।
ये जग है भवसागर,
आप ही हो माँ खेवनहार
अमन,शांति फैले जगत में,
टूटे नफरत की दीवार।
हे सिद्धिदात्री,हे मातृशक्ति
करता रहूं मैं अविरल भक्ति।
स्वरचित मौलिक रचना
संजय कुमार (अध्यापक )
इंटरस्तरीय गणपत सिंह उच्च विद्यालय,कहलगाँव
भागलपुर ( बिहार