सुन्दर सुभग मिथिला धाम से,
पावन पवित्र भूमि रे।
ललना रे जहां बसु राज विदेह,
प्रजा प्रतिपालक रे।
चकमक मिथिलाक मन्दिर,
खहखह लागै गहबर रे।
ललना रे सिया अइली धरती के कोर ,
गाबति माइ सोहर रे।
गदगद राज विदेह,
सुखक नहीं परतर रे।
ललना रे छवि निरखत दिन- रैन ,
लुटावै धन घर पर रे।
गुरूजी देलनि नाम “सीता”,
सिया छनि भवमोचनी रे
ललना रे अद्भुत,अनुपम रूप,
धरि अइली नारायणी रे।
प्रथम दरस रघुवीर,मनहिं प्रीत उपजल रे,
ललना रे करि विनती महागौरी,
श्रीराम वर पाओल रे।
पतिव्रता ब्रह्मचारिणी,
उभयकुल तारिणी रे।
ललना रे बढाओल नारीक मान,
असुर संघारिणी रे।
गुरूजन देलनि आशीष,
सिया भवप्रीता रे,
ललना रे पसरल मिथिला के नाम,
जगत सुपुनीता रे।
“मनु “सिया सोहर गाओल ,
गाबि के सुनाओल रे,
ललना रे राम चरण करि प्रीति,
अमरपुर जायब रे।
स्वरचित:-
मनु रमण “चेतना”