ज़िंदगी के सफर में …
बहुत कुछ देखा,
बहुत कुछ सुना,
बहुत कुछ सीखा,
बहुत कुछ समझा।
अरे ! समझा क्या—
अब भी समझना जारी है …
अनगिनत चेहरों से रोज़ मुख़ातिब होता हूँ,
लाखों बातों से अपने अनुभव बुनता जाता हूँ।
कुछ लोग बरबस मिल ही जाते हैं जीवन में,
चंद शब्दों में हृदय चीर ही जाते हैं।
इतना ही नहीं,
अपनी फुसफुसाहट से आत्मा भी तोड़ जाते हैं,
और अपनी मीठी मुस्कान से
तीखा ज़हर पीछे छोड़ जाते हैं।
मैं सोचता रहा—
दिन-रात सोचता रहा…
मैंने उनका क्या बिगाड़ा था ?
मैंने तो सबको अपना समझा,
सबके लिए अच्छा चाहा।
लेकिन फिर एक दिन यह जाना—
हर कोई अपना नहीं होता,
हर कोई आपका भला नहीं चाहता।
कुछ लोग बस इंतज़ार में होते हैं—
कि तुम गिरो,
और वे थाम लें वो जगह,
जो तुमने बड़ी शिद्दत से कमाई है।
पर एक दिन,
मैंने ठान लिया…
मुस्कुराकर चुप रहना सीख लिया,
हर बात का जवाब न देना जान लिया।
अपनी चुप्पी को अपनी ताक़त बना लिया,
और अपनी ज़िंदगी का रास्ता बदल दिया।
अब अंतर दिखता है—
अपने ही व्यवहार का
पाता हूँ मैं…
जब-जब वे ज़हर फैलाते हैं,
मैं गुलाबों की खुशबू में खो जाता हूँ।
उनकी फुसफुसाहट से उनकी ही मनोदशा का अनुमान लगाता हूँ
फिर मंद-मंद मुस्काता हूँ।
अपनी पसंदीदा किताबों में
किरदार ढूँढता हूँ—
कभी खुद को,
कभी उन्हें।
और जब देखता हूँ
उनके अधोगति का हश्र,
तो बस मंद-मंद मुस्काता हूँ।
जिंदगी का राग-गीत गुनगुनाता हूँ।
सीखा है मैंने ज़िंदगी से—
कुछ रिश्ते छोड़ देने से
ज़िंदगी हल्की हो जाती है।
कुछ कड़वाहट पी जाने से
साँसें गहरी हो जाती हैं।
किसी को जिंदगी से निकाल देने से
जिंदगी खत्म नही होती
जिंदगी शुरू होती है
नए शिरे से, नए सलीके से, नए जज्बे से..
मैने जान लिया है अब…
कुछ खो जाने से
दुख नहीं होता,
जब खुद को पा लेने का परम सुख होता है।
धन्यवाद उस असीम शक्ति का—
जिसने अनुभव का इतना बड़ा संसार दिया,
और अपनी ही कहानी का
मुझे फनकार बना दिया।
और अपनी ही कहानी का मुझे कलमकार बना दिया।
अब मैं टूटता नहीं,
बल्कि खुद को फिर कलम से गढ़ता हूँ
और जब लोग पूछते हैं-
“तुम इतने शांत क्यों हो ?”
तो मैं बस मुस्कुराकर कहता हूँ ….
“अनुभव स्याही की है- बोलती नहीं, पर लिखती बहुत है।”
लेखन व स्वर :-
अवनीश कुमार
व्याख्याता
प्राथमिक शिक्षक शिक्षा महाविद्यालय, विष्णुपुर, बेगूसराय

ये तो लगता है जैसे मन की बात हो; अनुपम