हिंदी है सरिता निर्मल जल की,
घर-आँगन में खिली कली गुल की।
शब्दों की गूँज, सुरों का संगम,
मन के भावों का मधुर आलम।
संगीत सी लय, परिंदा सी उड़ान,
देती है सबको अपनापन महान।
कभी लोकगीत, कभी वीर-गाथा,
कभी माँ की ममता-सी सौगात सा।
गाथा इतिहास की, सपनों की रेखा,
हिंदी है भारत का धड़कता लेखा।
जितनी विविध भाषा की बोली,
उतनी ही मधुर उसकी टोली।
आओ संवारें यह अनुपम निधि,
हमारी शान – हमारी पहचान हिंदी।
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