हमें तरु-मित्र बनना होगा- राम किशोर पाठक

हमें तरु-मित्र बनना होगा

नया सोपान गढ़ना होगा।
हमें तरु-मित्र बनना होगा।।

दादा के रोपें पेड़ों से,
हमने है कितने काम लिए।
ठंडी छाँव संग फल खाकर,
झूला भी हम-सब झूल लिए।।
इसे बचाकर रखना होगा।
हमें तरु-मित्र बनना होगा।।

बाहर जहाँ विराना मिलता,
वृक्षों का अफसाना मिलता।
हम तो आहत होते रहते,
जलता ठौर ठिकाना मिलता।।
सबको सत्य समझना होगा।
हमें तरु-मित्र बनना होगा।।

कहती है फल की महँगाई,
माँग बहुत है तेरी भाई।
चंद बचे पेड़ों से कैसे,
पूरी कर पाएँ भरपाई।।
अब तो हमें बदलना होगा।
हमें तरु-मित्र बनना होगा।।

ताप धरा का बढ़ता जाता,
जीवन संकट में है आता।
कौन भला किसको समझाएँ,
वृक्षों को कब काटा जाता!
रक्षा इनकी करना होगा।
हमें तरु-मित्र बनना होगा।।

हरी-भरी खुशहाली हरपल,
जीवन हो मतवाली हरपल।
सखा समझकर पेड़ों को जब,
संग बिताएँ हम-सब हरपल।।
सही श्रृंखला रखना होगा।
हमें तरु-मित्र बनना होगा।।

रचयिता:- राम किशोर पाठक
प्रधान शिक्षक
प्राथमिक विद्यालय कालीगंज उत्तर टोला, बिहटा, पटना, बिहार।
संपर्क – 9835232978

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