जीवन के कई रंग,
लोग यहां लड़ें जंग,
ठंड से ठिठुरे, नहीं चादर है पास में।
कोई नहीं देखे अभी,
दरवाजे बंद सभी,
गली में भिखारी खड़ा- भोजन की आस में।
कुछ दिखे मजदूर,
हालत से मजबूर,
सड़क किनारे बैठा- काम की तलाश में।
किसी को बादाम दूध,
मलाई सुहाता नहीं,
दीनों का धीरज डोले, ईश के विश्वास में।
जैनेन्द्र प्रसाद रवि’
म.वि. बख्तियारपुर, पटना
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