अपने देश का गौरव, अभिमान हूं मैं।
कंठ की गान, भारतवासी की पुकार हूं मैं।
माटी की सोंधी महक, संस्कृति की चमक हूं मैं।
धरती की भाषा, सभ्यता की धरोहर हूं मैं।
गंगा -यमुना की धारा, वेदों का अमर संदेश हूं मैं।
भारत की ध्वजा, वीरों की शौर्य गाथा हूं मैं।
कृष्ण की बंशी की तान, मीरा की भक्ति का गान हूं मैं।
तुलसी का रामायण, कबीर के सत्य – सा हूं मैं।
किन्तु, आज अपने ही देश में, खुद की खोती पहचान हूं मैं।
आज, अपनों में उपेक्षित, घर में अनाथ हूं मैं।
विदेशी भाषा की चकाचौँध में,
खुद को धुंधला रही हूं मैं।
अपनी अस्मिता को खोती जा रही हूं मैं।
अपनी अस्मिता को खोती जा रही हूं मैं।
——-पार्वती पंडित
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