हिंदी हमारी अस्मिता
हिंदी संभालती विविधता
हिंदी की भाषा सहज और सरल
विषय की सारगर्भित फलाफल
विविध रूप इसके सहेजे हुए हैं
संभाले हुए हैं भाषा की प्रवीणता
कुशल है दक्ष है जो इसकी प्रकृति
सहज भाव जन्मे है इसके धरातल
नहीं विस्मय इसमें कही भी कभी भी
समेटे हुए है अपने में जीवन,
विहग सी है चंचल
गंगा सी है निर्मल
करुण भाव इसमें
है जागृत सी होती
क्षमा और दया का बहता है सागर
समेटे हुए हैं कई भाव अपने
है भूमि सी सहनशील
सूरज सी तपती
गर्म जलती धरा सी
अपनी ही अस्तित्व को
बचाने अपनी अस्मत
गर कर पाए कुछ ऐसा
जो सुदृढ़ हो हिंदी
हरेक मन हो निर्मल
कर सके हिन्दी को निज मन में स्थापित
और बन सके हम खुशकिस्मत।
सधन्यवाद ।
0 Likes
