हिन्दी ही पहचान है – भोला प्रसाद शर्मा

Bhola

हिन्दी जगत का है इतिहास
पर रोग लगा है अंग्रेजी खास

ओके थैंकयूँ पर अधिक विश्वास
शुभकामनाएं का न समय है पास

मम्मी- डैडी मृत शब्द को बोले
शुभ नाम मात-पिता में मुँह न खोले

हाय! हेलो! सुन मन मुस्काये
छूकर प्रणाम कर मन लजाये

सॉरी बोल हम सब गलती मनाये
कहाँ गलती का एहसास भी आए

वह सभ्यता धर्म को खाकर
शॉर्ट-कट का ही राह अपनाये

घुटने तक अब हाथ ही पहुँचे
षष्टाँग प्रणाम अब मन ही सोंचे

क्यूँ हिन्दी से हम होते जुदा
छुपा हर मज़हब और खुदा

हमें हिन्दी प्राणों से प्यारा
सच में यह संसार में न्यारा

हिन्दी की छवि न यूँ बिखरायें
हर पल हम सबको यही बतलायें

हिन्दी गौरव गरिमा और गाथा
विश्व पटल पर सबको भाता

नर-नारी नारायण की शान है हिन्दी
ऊपर सितारे दूजे नारी की बिन्दी

हम बचपन की पहचान है हिन्दी
हर नन्हों की मुस्कान है हिन्दी


भोला प्रसाद शर्मा
डगरूआ,पूर्णिया (बिहार)

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