आभासी दुनिया की मृगतृष्णा-विनय कुमार

आभासी दुनिया की मृगतृष्णा 

सैकड़ों-हज़ारों दोस्त मिलें
फ़िर भी ख़ुद को
अपनापन की गलियों में
अकेला ही पाया
ये इंटरनेट की दुनिया
हमें किधर लिये जा रही?
ये तो अपनो से ही
हमें दूर कर रही
आओ! दोस्त बनाये कुछ ऐसा
जिसके संग मिल-बैठकर
थोड़ा हंस ले, थोड़ा रो लें,
अपने दिल की बात कह लें
कर कूड़ेदान के हवाले
अपने मोबाइल को,
मन से सदा के लिए स्विच ऑफ करें
और थोड़ा सुकूँ पायें
आभासी दुनिया के फर्ज़ी झंझटों से
जानता हूँ, बहुत कठिन हैं
आदतों से छुटकारा पाना
ख़ासकर मोबाइल हाथों से जाना
पर इस अंतहीन रेगिस्तान की
अंतहीन मृगतृष्णा को
शांत करने का शायद
यही मात्र तरीका है

✍️विनय कुमार वैश्कियार
आदर्श मध्य विद्यालय, अईमा
खिजरसराय (गया )

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