जीवन धारा – मनोज कुमार

Manoj (Vaishali)

वृक्षों की पत्ती जब धरा पर गिरती है,
जीवन की धारा को यूँ कहां छोड़ती है।
सूर्य की प्रभा से चमकती-दमकती है,
बन ठन कर मानों वह इठलाती है।
वायु के संग-संग चहकती-मचलती है,
संगीत की तान अद्भुत निकलती है।
पगतली के चाल पे आकृति बदलती है,
एक में अनेक का संदेश वह देती है।
जल के नमी का आनंद जब लेती है,
मिट्टी में मिल वह रूप बदल लेती है।
जीना जिनके संग हिल-मिल उन संग
इस जहां से रुखसत वह करती है।

वृक्षों की पत्ती जब धरा पर गिरती है,
अपनी उपस्थिति कुछ यूँ दर्ज करती है,
अस्तित्व को विलिन कर ह्युमस बनती है।

✍️
मनोज कुमार
राम आशीष चौरसिया उ म वि धानेगोरौल प्रखंड गोरौल जिला वैशाली

Leave a Reply

SHARE WITH US

Share Your Story on
info@teachersofbihar.org

Recent Post

%d bloggers like this: