राधाकृष्ण से सीताराम बनना है प्रेम- राजेश कुमार सिंह

Rajesh

वह प्रेम है ही नहीं जिसका उद्देश्य शरीर को पाना है।
हर युग में प्रेम का मतलब राधा-कृष्ण बन जाना है।।

माता-पिता एवं गुरुजनों को भुलाकर प्रेम नहीं होता।
संस्कृति तथा संस्कार को ठुकराकर प्रेम नहीं होता।।

तन की तमन्ना नहीं;मन से ईश्वरीय रिश्ता निभाना है।
हर युग में प्रेम का मतलब राधा-कृष्ण बन जाना है।।

प्रेमी-प्रेमिका एक-दूजे का दामन दाग़दार नहीं करते।
रूप-रंग,धन-संपत्ति,ओहदा देखकर प्यार नहीं करते।।

विवाह के बंधन में बँधे बिना भी इतिहास बनाना है।
हर युग में प्रेम का मतलब राधा-कृष्ण बन जाना है।।

सच्ची चाहत हमेशा एक-दूसरे की ख़ुशी चाहती है।
झूठी वासना श्रद्धा को टुकड़ों-टुकड़ों में बाँटती है।।

प्यार की पराकाष्ठा के साथ सीता-राम कहलाना है।
हर युग में प्रेम का मतलब राधा-कृष्ण बन जाना है।।

:-राजेश कुमार सिंह(शिक्षक)
उत्क्रमित मध्य विद्यालय बलथारा
मोहिउद्दीननगर, समस्तीपुर(बिहार)
‘राधाकृष्ण से सीताराम बनना है प्रेम’

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