आबह की होतैय-जयकृष्णा पासवान

Jaykrishna

कत्ह सपना सजै-लह छेला,
किस्मत के आड़ म।
सब धरले रही गेलैय,
जीवन के मंजधार म।।
हाथ आबह मली क,
तक़दीर की पैयतैय ।
हे विधाता आबह की होतैय।।
घर के एगो चिराग छेला,
गांव समाज के नाज़ छेला।
बेरोज़गारी मंहगाई म फंसी –
क धड़कन की आवाज़ छेला।
कौआ जैसन रूप देखी क,
कोयल जैसन बोलतै ।
हे विधाता आबह की होतैय।।
ज़माना देखो डराबह लागलै,
बेटा न बापो क धमकाबह- लागलै ।
दुनियां मातम के कील पर,
खड़ा छै।।
जे समझै नाय छै वहीं,
समझाय छै ।
सूखी दरिया म नाव चलाय क
मंजधार की पार होतैय ।।
हे विधाता आबह की होतैय।
ज्ञान, खादी कुर्ता के ,
बनलै शिकार।
किताब के जगह हाथों म,
मोबाईल के प्रकार।।
फैशन के दुनियां म,
संस्कारों के अत्याचार।
गारंटी के कोई वेल्यू नाय,
वारंटी के भरमार।।
है सब देखी क लागैय,
छै की चलतैय ।।
हे विधाता आबह की होतैय।।


जयकृष्णा पासवान
स०शिक्षक उच्च विद्यालय बभनगामा बाराहाट बांका

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