मृगतृष्णा- सुरेश कुमार गौरव

suresh kumar gaurav

जल की लहरों की भांति मिथ्या प्रतीति है यह
धरा के उपर भी कड़ी धूप सी लगती है यह।

गर्मी के दिन जब बढ़ जाता तहों का घनत्व घना
असमान उष्णता के कारण ही ऐसा धोखा बना।

वायु धरा से उपर जब-जब उठने के यत्न करती
उपर की ये तहें वायु को उठने नहीं देना चाहती।

वायु की लहरें बढ़ने लगती पृथ्वी के समानांतर
करने लगता तब मन बहती जल धारा के मतांतर।

इसे देख मृग बार-बार खा जाते हैं गहरा धोखा
यही मृग के मन का धोखा है मृगतृषा,मृगतृष्णा।

सुरेश कुमार गौरव,स्नातक कला शिक्षक,उमवि रसलपुर फतुहा,पटना (बिहार)
स्वरचित और मौलिक
सर्वाधिकार सुरक्षित

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