मां की विवशता- दया शंकर गुप्ता

daya

आइए करें एक विचार,
क्या मिला है अब भी,
माताओं को उचित सत्कार?
जेहन में आता है घटना बार बार,
जा रहा था बस से मै बाजार,
अचानक एक नवजात की,
सुन कर चीत्कार,
नजर गया अनायास एक बार,
महिला थी जो बस में सवार,
आस पास पुरुषो की भरमार,
सोच कर महिला हो रही शर्मसार,
फिर भी सुन के बच्चे की पुकार,
कर वहशी नजरों को दरकिनार,
दिया वक्ष स्थलों को उघार,
किया नव जीवन का श्रृंगार।
ऐसी माताओं का मैं वंदन करता हूं।
हृदय से उनका अभिनंदन करता हूं।।

स्वरचित
दया शंकर गुप्ता
प्राथमिक विद्यालय देवरिया
प्रखंड -मोहनियां, कैमूर

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