मनहरण घनाक्षरी – देव कांत मिश्र ‘दिव्य’

Devkant

शाक्य वंश जन्म लिए,
सत्य धर्म भाव किए,
तथागत बुद्ध हुए,
कृतियाँ महान हैं।

राजपाट त्याग कर,
मूल कर्म झोली भर,
ज्ञान बोधि वृक्ष पाए,
दया के निधान हैं।

जीव- जीव में प्यार हो,
द्वेष नहीं संचार हो,
हिंसा तृष्णा दूर कर,
सच्चे धनवान हैं।

चार आर्य सत्य पढ़ें,
नई दिशा कर्म गढ़ें,
दृष्टि वाणी सेवा प्रेम
भाव के वितान हैं।

देव कांत मिश्र ‘दिव्य’ मध्य विद्यालय धवलपुरा, सुलतानगंज, भागलपुर, बिहार

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