मित्रता – जैनेन्द्र प्रसाद रवि’

Jainendra

द्वारिका में मिलने को,
सुदामा जी आए जब,
चरण पखारें श्याम, पानी ले परात में।

मित्र कहो समाचार,
पूछा जब बार-बार,
अपनी गरीबी नहीं, कहा मुलाकात में।

वस्त्र फटे ठांव-ठांव
पनही के बिना पांव,
लाचारी समझे देख, दीनों के हालात में।

मोहन का बाल सखा,
मित्रता का फ़ल चखा,
झोपड़ी महल बन-गई बात बात में।

जैनेन्द्र प्रसाद रवि’
म.वि. बख्तियारपुर, पटना

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