मनहरण घनाक्षरी – एस.के.पूनम

S K punam

रुपहली आभा संग,
लिए हुए लाल रंग,
उदित है प्रभाकर,प्रवेश उजास का ।

हर्षित हो वसुंधरा,
इठलाते झूमे भौंरा,
हरियाली देख आए,मौसम प्रवास का।

आए पंछी उड़ कर,
तृण लाए चुन कर,
तिनका का आशियाना,चाहत निवास का।

खुला-खुला आसमान,
उन्मुक्त गगन उडूं
पिंजरे में कैद रहूँ,दुख कारावास का।
2
मानव से दूर रहूँ,
ईश्वर से यही कहूँ,
प्राण को गवांना नहीं,जीवन प्रयास का।

बिछाकर जाल बैठा,
धीरे-धीरे खींच उठा,
बाजार सजाया ऐसा,वस्तु है विलास का।

मोहे संग खेल खेले,
मनवां को बहलावे,
करता हूँ फड़फड़,चिन्ह प्रतिहास का।

महलों में रहता था,
बादशाहों का शान था,
कई रण मेरे नाम,पन्ना इतिहास का।

एस.के.पूनम(स.शि.)फुलवारी शरीफ,पटना।

One thought on “मनहरण घनाक्षरी – एस.के.पूनम

Leave a Reply

SHARE WITH US

Share Your Story on
info@teachersofbihar.org

Recent Post

%d bloggers like this: