दोहा – देव कांत मिश्र ‘दिव्य’

Devkant

दीप जलाकर ज्ञान का, करिए गुरु का गान।
चरण शरण रहकर सदा, तजिए निज अभिमान।।

गुरुवर प्रतिदिन शिष्य को, देते नैतिक ज्ञान।
मन वचनों से कर्म से, करें नित्य सम्मान।।

शिक्षक पारस की तरह, लेते शिष्य तराश।
गहन तिमिर को दूर कर, काटे नित भव पाश।।

कुंभकार सादृश्य गुरु, देते ज्ञान अमोल।
गुरु की महिमा है बड़ी, सके न कोई तोल।।

गुरु ही भव से तारकर, करते हैं उद्धार।
ऐसे गुरुवर को सदा, नमन सैकड़ों बार।।

सांदीपनि के शिष्य जब, हुए सुदामा श्याम।
पाकर उनसे ज्ञान-निधि, हृदय किया सुखधाम।।

गुरु चरणों में है जिसे, श्रद्धायुत विश्वास।
जीवन में पाता वही, सन्मति बुद्धि विकास।।

देव कांत मिश्र ‘दिव्य’ मध्य विद्यालय धवलपुरा, सुलतानगंज, भागलपुर, बिहार

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