जी का जंजाल – जैनेन्द्र प्रसाद रवि’

Jainendra

रूप घनाक्षरी छंद

कार्य करने से पूर्व
फल पे विचार करें,
बिना सोचे करने से, जी का बनता जंजाल।

स्थाई होता सुख नहीं
भोग और विलास में,
जगत की चकाचौंध, पुष्प जैसे दिखें लाल।

दुनिया में फंस जाते,
माया में लिपटकर,
मोह वश आदमी को, दिखता नहीं है काल।

क्षणिक आवेग पड़,
हो जाते आकर्षित ज्यों,
भ्रम में पतंगें नर, चुनते हैं दीप-ज्वाल।

जैनेन्द्र प्रसाद रवि’

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