दोहावली – देव कांत मिश्र ‘दिव्य’

होली कहती है सदा, रखिए नेह मिठास।
यही पर्व का सार है, यही सुखद-आभास।।

भेद-भाव को भूलकर, खेलें होली आज।
समता के संदेश से, रखिए सुखी समाज।।

द्वेष दंभ की होलिका, अच्छाई की जीत।
हँसी-खुशी की भावना, हर लेती मनमीत।।

जलें द्वेष की होलिका, पगें प्रीति बौछार।
पर्व मनाकर नेह का, लाएँ नई बहार।।

सत्य भाव की जीत हो, कलुष भाव की हार।
हो ली निश्छल प्रेम का, सुखद शांति आधार।।

होली की पहचान है, रंग-अबीर सुवास।
गीत मधुरता भाव का, छलक रहा उल्लास।।

हँसता फागुन झूमता, देख प्रिये का गाल।
हर्षित मन खेले पिया, का पा संग निहाल।।

भक्त बनो प्रह्लाद-सा, तजो नहीं सत्संग।
मग्न रहो प्रभु प्रेम में, बजा-बजाकर चंग।।

देव कांत मिश्र ‘दिव्य’ मध्य विद्यालय धवलपुरा, सुलतानगंज, भागलपुर, बिहार

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