अब क्या-प्रभात रमण

अब क्या अब क्या गाँव की शान ढूंढते हो ? अपनी सभ्यता का सम्मान ढूंढते हो बाँस के मचान का दलान ढूंढते हो बबूल के पेड़ में आम ढूंढते हो…

स्वतंत्रता दिवस-प्रभात रमण

स्वतंत्रता दिवस तन स्वतन्त्र और मन स्वतंत्र है स्वतंत्र सकल समाज है । बहुत दिन परतन्त्र रहे स्वतन्त्र भारत आज है । मुगलों, गोरों का राज्य गया अखण्ड भारत बस…

बेटी-प्रभात रमण

बेटी बीजों को कोंपल बनने दो कलियों को तोड़ो मत तुम बेटी तो घर की लक्ष्मी है उससे मुँह मोड़ो मत तुम घर में चहकती रहती है कटुता भी हँस…

राखी-प्रभात रमण

राखी राखी का बंधन ना बंधे तो क्या राखी का त्योहार नही ? है जिस भाई की बहन नहीं क्या उसे है रक्षा का अधिकार नही ? पूछो उस भाई…

कैसे-प्रभात रमण

कैसे  माँ भारती के दिव्य रूप को मैं दिवास्वप्न समझूँ कैसे ? इसके परम पूण्य प्रताप को मैं भला भूलूँ कैसे ? वीरों के शोणित धार को कैसे मैं नीर…