आपस में प्यार हो.. जैनेंद्र प्रसाद रवि

*आपस में प्यार हो*
(मनहरण घनाक्षरी छंद)
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कोई कहे लाख बुरा-
करता   बुराई   नहीं,
*अवगुण गुण बन-जाए सद्विचार हो*।

यदि हो अभिन्न मित्र,
दिल में बसा हो चित्र,
*नहीं फर्क पड़ता है, जीत चाहे हार हो*।

सच्चे प्रेमियों की बातें-
छिपाने  से  छिपे नहीं,
*खुलकर कभी चाहे, नहीं इज़हार हो*।

चाहे   दूर   रहें  भले,
कभी नहीं  मिलें गले,
*रहता क़रीब यदि, आपस में प्यार हो*।

जैनेन्द्र प्रसाद ‘रवि’

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