अंगेठी सा तू जल जरा – संजय कुमार गुप्ता

अंगेठी में ना होती लौ ,ना होती कोई लपेटे ।
पर तमस समेटे रहते हैं ये काले जलते कोयले।
यूं ही साए में जीते हैं पर तम- तिमिर-तृष्णा ,
सब की गले लगाते हैं ।
अंदर-अंदर ये धधक रहे,
मानो लहरों को लपक रहे
पर सोने सा यह चमक रहे ।
ना होती लौ इनकी स्वाभिमानी,
ना होती कभी लपेटे अभिमानी।
काले-काले जलते कोयले की बस यही कहानी
काले-काले जलते कोयले की बस यही कहानी।
बिना शिकवा शिकन मौज ही है इसकी बलिदानी ।
टीस पीड़ा और बयार से थोड़ा प्यार,
बदले में कुछ नहीं जलकर मिटाना ही है इसका संसार।
बस थोड़ी बयार तो आने दे इसे अपनी जलन बनाने दे ,
गर रूठे ये बयार भी सिकन ना मुझ पे आएगा ।
मेरी सिसकियां ही मुझे सोने सा चमकाएगा ।
मेरी सिसकियां ही मुझे सोने सा चमकाएगा।।

संजय कुमार गुप्ता
PGT गणित
+2 LBSS उच्च विद्यालय पलासी अररिया

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