अनमोल जिन्दगी
जाए न व्यर्थ जिदंगी
यह बड़ा “अनमोल” है,
इस धरा पर तेरा नहीं
तेरे कर्म का ही “मोल” है ।
मिल न पाये क्या पता
“जीवन” तुझको फिर कभी ,
“कीमत” समय की तू समझ
जो करना है कर ले अभी ।
याद रखती दूनियाँ उनको
जिसने खुद को मिटा दिया,
परवाह नहीं की “प्राण” की
जीवन अपना लुटा दिया ।
सोचकर ऐसे जियो तुम
आज ही आखिरी दिन तेरा ,
कुछ करो “रब” के लिए
तुम्हें याद रखेगी “धरा”।
धरती के सब जीव में
“मनु” तू ही तो श्रेष्ठ है,
हर लो सारी दुनियाँ का
जो भी छाया “कष्ट” है।
स्वरचित
डॉ अनुपमा श्रीवास्तवा
आर. के. एम +2 विद्यालय
जमालाबाद, मुजफ्फरपुर
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