भारत के महाकाश में , एक नक्षत्र-सा बिंबित हुआ। सत्य अहिंसा का धीरव्रती वह, भूमंडल पर प्रतिबिंबित हुआ।। बचपन से ही सत्य, न्याय का, भाव सदा अर्पित करता। बाल्यकाल से…
Author: Dev Kant Mishra
विधाता छंद- एस. के. पूनम
कहे गोविंद श्यामा से, मिलूँगा मैं अकेले में। कही राधा अनंता से, पडूँगी ना झमेले में। सदा से ही सखी वृंदा, अजन्मा की दिवानी है। नयन भींगे हृदय बिंधे,…
पेजर का भय- रामपाल प्रसाद सिंह ‘अनजान’
काग बोलता रहा डाल पर, क्या लिखा दुनिया के भाल पर? तेरे अस्तित्व पर मैं टिका हूॅं, तुझसे बहुत मैं सीखा हूॅं। विस्मित हूॅं बदलते चाल पर। कौवा बोल रहा…
खेल- रामकिशोर पाठक
खेल-खेल कर बड़े हुए हम घुटनों से अब खड़े हुए हम। है इससे कुछ ऐसा नाता, बच्चे बूढ़े सभी को भाता। बचपन का यह मित्र महान, कह गए हैं…
जंगल में मंगल – मधु कुमारी
संग हरियाली के जी ले पल दो पल, करती सरिता जहाँ पग-पग कल-कल। मनहर-सी छटा छाई धरा पर हरपल, करते अंबर जिसकी रखवाली पल-पल।। आओ बच्चों करें जंगल में…
बेटी के मायने – अमरनाथ त्रिवेदी
बेटी है तो यह घर संसार है। बेटी है तो संबधों के आधार हैं।। बेटी है तो संबंधों में संचार हैं। बेटी है तो संबंधों के मधुर जाल हैं।। बेटी…
राजू के घर चली मासी – अवनीश कुमार
राजू के घर चली मासी बच्चों के लिए ली गरमा-गरम समोसे। रास्ते मे बंदर आया, झपटा थैला, ले गए समोसे। मासी का उतरा चेहरा ऐसे- जैसे लगे लाल-लाल टमाटर…
इंद्रधनुष – देवकांत मिश्र ‘दिव्य’
नभ में इंद्रधनुष को देखो, कितना प्यारा लगता है। मन करता है इसको छू लें, सुंदर न्यारा लगता है।। प्रथम रंग बैंगनी कहाता, रंग दूसरा है नीला। मध्य आसमानी रक्ताभा,…
मनहरण घनाक्षरी- रामपाल प्रसाद सिंह
उपदेश देकर जो, जिंदगी सवार लेते, बेचकर निज कर्म, सहज बनाते हैं। दुनिया को कहे फिर, ,बेकार हैं मोती हीरे, खुद छिप-छिपकर, कुबेर सजाते हैं। उजाला में सत्य जब, नंगा…
गीत- रामपाल प्रसाद सिंह
आज जयंती है दिनकर की, अपनी रचना लिखकर गाओ। जिसने लिखकर समय को मोड़ा, उनकी रचना सुनो सुनाओ।। विषम काल में जीवन पाकर, निर्भयता से लिखना सीखें। बीत गए दशकों…