विधा- रूप घनाक्षरी: जैनेन्द्र प्रसाद रवि

किसान “”””””””””””””””” फसल बोने के पूर्व, खेतों की जुताई हेतु, सुबह ही चल देते, हल बैल ले के संग। हरियाली देख कर, चेहरे हैं खिल जाते, किसानों के हो जाते…

खुद मनुष्य बन, औरों को मनुष्य बनाओ- गिरीन्द्र मोहन झा

सदा कर्मनिष्ठ, सच्चरित्र, आत्मनिर्भर बनो तुम, जिस काम को करो तुम, उससे प्रेम करो तुम। नित नई ऊँचाई छूकर, सदा आगे बढ़ो तुम, यदि कर सको तो, जरुरतमंदों की मदद…

दोहावली-देव कांत मिश्र

दोहावली हे माता जगदम्बिके, तू जग तारणहार। अनुपम दिव्य प्रताप से, संकट मिटे हजार।। बढ़ना है जीवन अगर, चलिए मिलकर साथ। सारी दुनिया आपको, लेगी हाथों-हाथ।। बेटा है कुल दीप…

मातृभूमि-देव कांत मिश्र

मातृभूमि मातृभूमि है अपनी प्यारी, जन-जन को बतलाना है। इसकी नित रक्षा की खातिर, सुन्दर भाव जगाना है।। देखो माटी चंदन जैसी, लगती कितनी प्यारी है। खुशबू इसकी सौंधी होती,…

मैं भारत हूँ-देव कांत मिश्र

मैं भारत हूँ मैं भारत हूँ, सदा रहूँगा, ऐसा ‌ही बतलाऊँगा। माटी के कण-कण से सबको, अभिनव गुण सिखलाऊँगा।। पत्ते कहते मैं भारत हूँ, हरा रंग दिखलाऊँगा। हरित भाव को…

चौपाई-देव कांत मिश्र दिव्य

केवट कथा आएँ निर्मल कथा सुनाएँ। भक्तों का हम मान बढ़ाएँ।। राम कथा में ध्यान लगाएँ। मनहर सुखद शांति नित पाएँ।। नाविक था गरीब वह केवट। नौका गंगा करता खेवट।।…

गाँव-देव कांत मिश्र

गाँव यह गाँव हमारा प्यारा है अद्भुत सुन्दर न्यारा है। चलो तुम्हें हम आज दिखाएँ उर का भाव हमारा है।। होती अनुपम मृदा गाँव की सत्य सभी ने जाना है।…