मेरी पोषण वाली थाली – अवधेश कुमार

मेरी पोषण वाली थाली : बाल कवितामाँ ने सजाये थाली में अनोखे रंग ,पोषण थाली अब करेगी कुपोषण से जंग । मोटे अनाज देंगे हमें बल,गेहूँ, चावल भरें संबल। दाल…

करवा चौथ – राम किशोर पाठक

करवा चौथ – विधाता छंद सुहागन आज करती है जहाँ उपवास भर दिन का।सुधाकर को निहारी है सुहानी रात जीवन का।।अमर सिंदूर हो मेरा नहीं हो कष्ट भी थोड़ा।यही शुभ…

करवा चौथ – रामपाल प्रसाद सिंह अनजान

विधाता छंदाधारित मुक्तककरवा चौथ कहीं संगम कहीं तीरथ,धरा पर पुण्य बहते हैं, सजी हैं नारियाॅं भूपर,कहेंगे व्यर्थ कहते हैं। हजारों साल जिंदा हो,चमकता माॅंग का सिंदूर.., जहाॅं पतिदेव की सेवा,वहाॅं…

कष्ट – बैकुंठ बिहारी

कष्टबाल्यावस्था से ही यह माया,किशोरावस्था में भी, न छोड़ती किसी की काया,कभी कुछ खोने का कष्ट,कभी कुछ छूटने का कष्ट,कष्ट का है यह मायाजाल,सुख सुविधा का भी ऐसा ही मायाजाल,जिसे…

आओ मिश्रण को अलग करे- अवधेश कुमार

: विज्ञान कविताआओ मिश्रण को अलग करे,ये पहल सब मित्रों से करें ।क्योंकि मिश्रण में छिपा है विज्ञान ,इसमें छिपा है क्रमबद्ध विशेष ज्ञान ।जब कपूर और नमक हों संग…

चौसर – रुचिका

चौसर जिंदगी के चौसर पर हम रहेंबस एक मोहरेंचाल ऊपर वाला चलता रहा।कभी शह, कभी मात वह देताऔर दर्प इंसानों के मन मेंबढ़ता रहा। जिंदगी के चौसर पर हम रहेंबस…

धूप कहां देखती अपना घर- रामपाल प्रसाद सिंह अनजान

मदिरा सवैया211-211-211-211=211-211-211-2 धूप कहाॅं दिखती अपना घर। काॅंप रही किरणें अब ऑंगन,देख प्रभा यह पस्त हुई।गर्म हवा अब भाग रही खुद,कोयल गाकर मस्त हुई।।काग बिना सजती गलियाॅं अब,धूप खिली दिन…

दस्तूर दुनिया की- विधाता छंद मुक्तक- राम किशोर पाठक

विधाता छंद मुक्तक जिसे रोना नहीं आया उसे कोई नहीं समझा।गमों के दौर से बोलो नहीं वह कौन जो उलझा।सदा सबको सहारा तो दिया लेकिन बताओ अब,वही खुद को सहारे…