स्वयं की खोज : –
भीड़ में गुम है कोई पहचान ,
हर चेहरा / मुखौटा जैसे एक समान।
धन की दौड़ हो या सुख की चाह,
मन में दर्द फिर भी उठे आह ! ।
विज्ञान ने दी उड़ान विशाल,
औषधि ने मिटाया बीमारियों का जंजाल।
पर अंतरात्मा पुकार रही हर बार,
वो “मैं कौन?” का मौन सवाल।
संसार के मेले में कह रहा खोया मन,
अपनों के पास भी , पर अनजाने बन।
हर आशीष और प्यार मिला, पर आत्मा रही कोसों दूर,
जीवन में जैसे लगा हो अधूरा सुर।
ज्ञान वह नहीं जो बाहर कहीं,
न धन, न यश, न ऊँची गगन में सही ।
स्वयं की खोज ही सच्चा प्रमाण,
यही जीवन का परम विधान।
रुक जा ज़रा, देख अपने मन में,
जहाँ न चाह, न कोई भ्रम में।
वहीं छिपा जीवन का सार,
स्वयं को पाना ही सच्चा उद्धार ।
प्रस्तुति – अवधेश कुमार
उत्क्रमित उच्च माध्यमिक विद्यालय रसुआर , मरौना , सुपौल
