बालमन फिर झूले-भोला प्रसाद शर्मा

Bhola

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बालमन फिर झूले

बालमन झूले विद्यालय में
बालमन फिर झूले—–2

बच्चे भी आए गुरुवर भी आए,
देख दूसरों को फूले न समाये।
नन्हें भी आकर मन को हर्षाये,
टप्पू टुनटुनियाँ बजाए कि
बालमन फिर झूले——।
बालमन झूले विद्यालय में
बालमन फिर झूले——।

दीदी जी मेरी कितनी निराली,
सुनसान लगती थी बगिया की डाली।
निर्मल वाटिका भी मुझे याद आये,
वह वीरान परिसर भी गाये कि,
बालमन फिर झूले——-।
बालमन झूले विद्यालय में
बालमन फिर झूले——-।

श्याम सुन्दर सर अलज़ेब्रा पढ़ाये,
लॉकडाऊन में सब कुछ भुलाए।
बापू की पाती रखें हैं संयोकर,
नई शिक्षा-नीति की चर्चा कराये।
कि बालमान फिर झूले–।
बालमन झूले विद्यालय में
बालमन फिर झूले——-।

दोस्तों की दूरी अब मिट जाए,
विषय काल पर अब नजर गराए।
साथ सब मिल विद्यालय सजाये,
अब बाल मंच उधम मचाए।
कि बालमन फिर झूले—-।
बालमन झूले विद्यालय में
बालमन फिर झूले——-।

सोचा सभी को बड़ा मजा आया,
साल जब बीते तो घर भी न भाया।
शिक्षा भी रह गई थोड़ी अधूरी,
मोबाईल से काम चलाये कि
बालमन फिर झूले——।
बालमन झूले विद्यालय में
बालमन फिर झूले——-।

ऐसी दुविधा फिर न कभी आए,
ईश्वर से ही यही आस लगाये।
रहें दुरुस्त और कर लें पढ़ाई,
संग अब सब खुशियाँ मनायें
कि बालमन फिर झूले—–।
बालमन झूले विद्यालय में
बालमन फिर झूले——–।

भोला प्रसाद शर्मा
डगरूआ, पूर्णिया (बिहार)

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