आजादी आधार, मिली जब से भारत को।
दौड़ पड़े सबलोग,विनत हुए सु-स्वागत को।।
सुनकर विस्मित मान,रहे हैं खुद को प्राणी।
कितने तन बलिदान,हुए हैं जग कल्याणी।।
श्रेष्ठों में से एक,आज उनकी है पारी।
बिरसा मुंडा नेक,पुरुष अद्भुत अवतारी।।
इनके गौरव गान,गुॅंथें हैं इतिहासों में।
इनकी शुभ पहचान,बसी है हर साॅंसों में।।
इनके दृढ़संकल्प,देखकर भारत जागा।
सुनकर शेर दहाड़,काॅंपता दुश्मन भागा।।
जब तक तन में साॅंस,किये क्रिया जानलेवा।
ये सचमुच भगवान,किये भारत की सेवा।
गलत रीति संघर्ष,सदी से चलती आई।
उन पर मार कुठार,राह नव एक बनाई।।
करना है उत्थान,करो भरपूर पढ़ाई।
दे दो मेरा साथ, करूॅंगा पर्वत राई।।
जनसागर के बीच,कहाते धरती आवा।
सीधा-सादा रूप,सरल इनका पहनावा।।
तजकर भू अल्पायु,स्वर्गवासी कहलाए।
अमर हुए खुद आप,सुखी’अनजान’बनाए।।
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रामपाल प्रसाद सिंह अनजान
पूर्व प्रधानाध्यापक मध्य विद्यालय दर्वेभदौर
