कुंडलिया- देव कांत मिश्र ‘दिव्य’

माता की आराधना, करो सदा प्रणिपात। अंतर्मन के भाव में, भरो नहीं आघात।। भरो नहीं आघात, कर्म को सुंदर करना। मन की सुनो पुकार, पाप को वश में रखना। पढ़कर…

पुस्तक-देव कांत मिश्र

पुस्तक पुस्तक देती ज्ञान है, करो सदा सम्मान। पढ़े इसे जो मन सदा, पाए अभिनव ज्ञान।। पाए अभिनव ज्ञान, इसे नित मन में लेखो। करें सभी गुणगान, सदा तुम करके…