मधुमख्खी का डंक ओ मधुमख्खी रानी, ओ मधुमख्खी रानी। तुने खुब बनाई अपनी कहानी।। एक गाँव की सुनो कहानी, ना कोई राजा न कोई रानी। एक परिवार में दो बच्चे…
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दो जून की रोटी-संयुक्ता कुमारी
दो जून की रोटी किस्मत से नसीब होती है दो जून की रोटी। चहुँ ओर कोरोना हाहाकार मचाये दुनिया है परेशान, विवश और लाचार मजदूर हुए हैं। असमर्थ और परेशान…
विवसता-रुचि सिन्हा
विवशता प्रकृति ने गजब रौद्र रूप अपनाई है , एक तरफ है कुंआ तो दूसरी तरफ खाई है । हे ईश्वर ये तूने कैसी घड़ी लाई है । चहुँ ओर…
गांधारी का विलाप-दिलीप कुमार चौधरी
गांधारी का विलाप महाभारत का हुआ था अंत ; मचा था हाहाकार दिग्दिगंत । रण-भूमि में बिखरी थीं लाशें ; देखकर थम जाती थीं सांसे । कहीं पड़े थे…
संभव नहीं – ब्रजराज चौधरी
संभव नहीं छोड़ दें हर कुछ बस अपनी ही खुशी के लिए ये तो संभव ही नहीं है ,हर किसी के लिये। माना कि घर में ही रहना है…
रोटी-प्रियंका प्रिया
रोटी इस दो जून की रोटी की खातिर नीयत करते सब खोटी, वाकई रोटी चीज नहीं छोटी।। क्या कहूँ इस पापी पेट के लिए क्या क्या सितम उठाना पड़ता है,…
कुदरत-प्रीति कुमारी
कुदरत कुदरत तेरे रंग हजार, इस जीवन रूपी नैया का, है तू ही खेवनहार। कुदरत तेरे रंग हजार। कभी तू देता ढेरों खुशियाँ, कभी दु:खों के पहाड़, और कभी तू…
गोरैया की आत्म व्यथा-अपराजिता कुमारी
गौरैया की आत्मव्यथा मैं हूँ चुलबुली सी गौरैया स्थिर नहीं मैं रह पाती हूंँ, चहक चहक कर फुदक फुदक कर परिस्थितियों के अनुकूल ढल जाती हूँ। मैं हूँ चुलबुली सी…
समय-जैनेन्द्र प्रसाद रवि
समय हवा शुद्ध है फिर भी हम, मास्क आज लगाते हैं। खाली सड़कें रहने पर भी, ड्राइव पर नहीं निकल पाते हैं।। स्वच्छ हाथ रहने पर भी मिलाने पर है…
किसान-सूर्यप्रकाश
किसान धरती है मेरी माता, पिता को माना आसमान, है मेरी यही परंपरा, है मेरी यही शान I हाँ मै भी हूँ एक किसान I भरता हूँ दुनियाँँ का पेट,…