गुण गुणी धूप
मनहरण घनाक्षरी छंद
सूरज निकलने का
रहता है इंतजार,
सुबह की धूप हमें, लगती तो प्यारी है।
दूर तक दिखती है
मखमली बिछी हुई,
घास पर ओस बूंदें, मोती जैसी न्यारी है।
पंछियाँ भी घोसले से
जातीं है बाहर नहीं,
जब तक आती नहीं, रवि की सवारी है।
जल्दी बिछावन नहीं
छोड़ने को मन करे,
रजाई-गरम चाय, हो गई दुलारी है।
जैनेन्द्र प्रसाद ‘रवि’
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