दीपोत्सव
आओ हम सब त्योहार मनाएं,
मिल-जुलकर इस दिवाली में।
गिले-शिकवे सब दूर करें हम,
ताकि दिन बीते खुशहाली में।।
चाहे कोई मजदूर किसान।
राजा-रंक हो या बलवान।
संतान सभी भारत माता की,
स्त्री-पुरुष या वृद्ध जवान।।
जो अपनों से बिछड़ चुके हैं,
जिनके सिर छत उजड़ चुके हैं।
गरीबी और बीमारी के कारण,
जो समाज से बिछड़ चुके हैं।।
उनके घरों में दीप जलाएं,
जिनके दिन बीते बदहाली में।।
पटाखों से तुम दूर ही रहना,
मानो अपने बड़ों का कहना।
यदि भूल से जो हाथ जलेगा,
खुशी के बदले होगा रोना।
माता, पिता की डांट मिलेगी,
उनकी रात बीतेगी रखवाली में।।
मित्रों को अपने घर पे बुलाओ,
एक दूजे को गले लगाओ।
नफरत की दीवार तोड़कर,
दुश्मन को भी दोस्त बनाओ।
आओ हम कुछ फूल खिलाएं,
सूखे पेड़ों की भी डाली में।।
आओ हम त्योहार मनाएं।
मिलजुल कर दिवाली में।।
जैनेन्द्र प्रसाद रवि’,
पटना, बिहार