मनहरण घनाक्षरी
दुविधा में हम पड़े,
अपनी ही जिद अड़े,
अधिकारी पास खड़े, होते परेशान हैं।
साथी सारे कह रहे,
लेन-देन कर कहे,
चैन आप सब गहे, बने क्यों नादान हैं।
रास मुझे आती नहीं,
राज यह भाती नहीं,
आस बन पाती नहीं, सारे ही हैरान हैं।
कठिन डगर यह,
हँसते हैं सब कह,
नहीं पाएँ आप रह, ऐसा ही विधान है।०१।।
खर्च कुछ लेते नहीं,
घुस हम देते नहीं,
आज तक चेते नहीं, आप जान लीजिए।
कहता जमीर मेरा,
कैसा है वजीर तेरा,
डालके नजीर घेरा, ज्ञान मत दीजिए।
सतपथ के राही है,
बोलना भी मनाही है,
नियमित उगाही है, थोड़ा तो पसीजिए।
चाहे चुभे शूल पाँव,
लगा बैठे सारे दाँव,
करे कोई काँव-काँव, सही है सो कीजिए।०२।।
रचयिता:- राम किशोर पाठक
प्रधान शिक्षक
प्राथमिक विद्यालय कालीगंज उत्तर टोला, बिहटा, पटना, बिहार।
संपर्क – 9835232978
दुविधा…राम किशोर पाठक
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