आओ कलम -गौतम भारती

Gautam
आओ कलम 

तुम्हीं को पूजें,
तुम्हीं को चाहें,
तुम्हीं को गले लगाएं l 2
आओ कलम !
फिर साथ में तेरे,
आगे कदम बढ़ाएं ।
आगे कदम बढ़ाएं ll

     तुम रंग-बिरंगे 
     मनमोहक हो ,
  हाथों में पट ही जाते हो l
  कैसे करूं बखान मैं तेरा?
  तुम हर-घर पूजे जाते होll
     एक सहारा 
    तुम ही तो हो l
    बस यार हमारा, 
    तुम ही तो हो ll 2
    बड़ी सिद्दत से 
    मन करता है l-2
    सीने पर तुझे सजाएँ ...
     आओ कलम !
    फिर साथ में तेरे, 
   आगे कदम बढ़ाएं l
   आगे कदम बढ़ाएं ll

यहाँ शुद्ध हवा है ,
हरियाली है ,
फिर भी घुटन सी होती है l
तन अपना है ,
मन भी आपना,
पर दिल में चुभन सी होती है ll
एक टीस-रिसता
मन मन्दिर में l-2
क्यों प्रीत पराई गाएं ?
आओ कलम !
फिर साथ में तेरे,
आगे कदम बढ़ाएं l
आगे कदम बढाएं ll

    मन करता था, 
    रुक जाएं यहीं पर, 
  बस रुक कर खुशियाँ पाएं l
    कुछ दिन चैन से 
    जी लें अब तो ,
   और झूमे-नाचें-गाएँ  ll
    पर!
   इस पड़ाव पर सुकून नहीं हैl
    रोटी है, दो जून नहीं है l
     लाज - हया, 
    कहाँ याद किसी को  ?
    ऐठन है,अकड़ है, हड्डी है,
    पर काटो तो खून नहीं है ll
    जग सारा सूना 
    जिन्दगी सूनी l -2
    है सूनी सारी फिजाएं....
    आओ कलम !
    फिर साथ में तेरे ,
    आगे कदम बढ़ाएं l
    आगे कदम बढ़ाएं ll

तुम तो खेलते
शब्दों से हो,
लोग विश्वास से
खेला करते हैं l
यहाँ मोल नहीं
विश्वास पात्र की,
पल में रौंदा करते हैं l
पल में रौंदा करते हैं ll
तुम्हें लाख फिक्र हो
औरों की
ये भला उन्हें क्यों भाएं…
आओ कलम!
फिर साथ में तेरे
आगे कदम बढ़ाएं l
आगे कदम बढ़ाएं ll
………
गौतम भारती
पूर्णिया।

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