हर सुबह
अरुण सी आभा लिए
सूरज निकलता हर सुबह
कलियाँ भी मुस्काती हुई
खिल जाती है हर सुबह।
चिड़ियाँ खुशी में झूम कर
नाचा करती हर सुबह
पशुजात भी भोजन के साथ
दूध से भरता है घर।
खेतों की अलसाई लता में
जोश भर जाती सुबह
हर ओर हरियाली का है
साम्राज्य दिखता हर सुबह।
नितकर्म से निवृत्त हो
कृषक दिखते हर पथ पर
ले साथ में कृषि के यंत्र
पहुंच जाते कर्मस्थल तक।
सूरज की किरणें देखकर
नदियों का जल करता कल-कल
हर दूब पर ओस के कण
दिखता हर शीतल सुबह।
खिलता सुमन को देख कर
खिल जाता है भौंरे का तन
मीठे शहद की चाह में
रस चूसता रहता मधुकर।
जन जन की पीड़ पल भर में
कर दूर दे शीतल पवन
कैसी निराली महिमा तुम्हारी हे ईश्वर!
करता तुझे शत-शत नमन।
करता तुझे शत-शत नमन।
विजय सिंह “नीलकण्ठ”
सदस्य टीओबी टीम