हिन्दी दिवस : रसों की सरिता
सुरेश कुमार गौरव
हिन्दी का श्रृंगार है, जैसे फूलों की मुस्कान,
भावों में रस बरसाए, प्रेम भरे अरमान।
वीरों की हुंकार है, रण में गूँजे स्वर,
हिन्दी की गौरव गाथा, जग में फैले भर।
करुण कथा भी कहती, उपेक्षा की पीर,
फिर भी आशा जगाती, देती नव नीर।
माँ के आँचल जैसी, है हिन्दी की छाँव,
वात्सल्य रस बरसाती, जीवन में बहाव।
हास्य का मधुर संग है, चुटकुलों का झरना,
मन को हँसाती भाषा, हर पीड़ा हरना।
भक्ति रस में गूँजती, मीरा तुलसी वाणी,
ईश्वर से जोड़ती यह, पावन अमृत धानी।
अद्भुत दृश्य रचाती, शब्दों का विस्तार,
हिन्दी में झलके सारा, जग का अद्भुत हार।
शांति का संदेश भी दे, जग को राह दिखाए,
हिन्दी में मानवता का, सूरज जगमगाए।
यह रसों की सरिता बनकर, बहती हर ओर,
हिन्दी दिवस पर गूँज रही, इसका जय-शोर।
सुरेश कुमार गौरव, प्रधानाध्यापक उत्क्रमित मध्य विद्यालय रसलपुर अंचल-फतुहा (बिहार)
Suresh Kumar gaurav
