भारत की शोभा हिंदी है।
हम हिंदी के शिक्षक हैं,
हिंदी का अलख जगाते हैं।
हिंदी ही हमारी भाषा है,
हिंदी का महत्व बताते हैं।।
हिंदी के लिए ही मरना मिटना,
सत्य कर्तव्य हमारा है।
हिंदी के हम हैं सच्चे प्रेमी,
हिंदी सदा सहारा है।
हम सब हिंदी वाले हैं,
हिंदी ही धर्म हमारा है।
हिंदी सदा बढ़े-फूले,
हिंदी ही कर्म हमारा है।।
भारत की संस्कृति है हिंदी,
जन-जन की अभिलाषा है।
कण-कण से है इसका रिश्ता,
देश प्रेम की भाषा है।।
बड़ी सुरीली भाषा है यह,
बहुत रसीली लगती है।
गद्य – पद्य चाहे मुक्तक हो,
सब में सुंदर दिखती है।।
पावन देश की भाषा न्यारी,
बोली इसकी प्यारी है।
तुलसी, सुर, कबीर, निराला,
इनको सदा दुलारी है।।
बनी पहेली खुसरो की,
आगे आकर खड़ी हुई।
भारतेंदु की बगिया में,
पा प्रेम प्रकाश बड़ी हुई।।
मातृभाषा हमारी है यह,
हमें प्राणों से प्यारी है।
हम इसके आभारी हैं,
यह जननी की अधिकारी है।।
नारी की शोभा बिंदी है,
भारत की शोभा हिंदी है।
दयानंद तिवारी ''शांडिल्य''
हिंदी शिक्षक
मध्य विद्यालय बैताल
बाँकेबाज़ार (गयाजी)
