कचरे की ढेर जैनेंद्र प्रसाद

Jainendra

कचरे की ढेर
समसामयिक रचना

सबको दे खुशहाली,
चली गई ये दिवाली,
बाजारों में जमा हुई, कचरे की ढेर है।

जश्न पुरज़ोर होता,
पटाखे की शोर होता,
जागने से आंखें नहीं, खुलती सबेर है।

रात भर जाग कर,
खुशियांँ मनाते लोग,
इसीलिए करते हैं, सफाई में देर है।

थोड़ी सी लापरवाही,
बढ़ा देती परेशानी,
प्रदूषण से बचाव, समय की टेर है।

जैनेन्द्र प्रसाद ‘रवि’

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