साक्षात अमरनाथ है
मनहरण घनाक्षरी छंद में
चारों धाम घुम आया,
कहीं नहीं मन भाया,
तीर्थ राज बनकर, गुरुदेव साथ हैं।
भाव पास कट गया,
अंधकार मिट गया,
जब से पकड़ लिया, गुरुवर हाथ हैं।
भेदभाव भुलाकर-
जब से हैं अपनाये,
मैं भी इन्हें मान लिया, बाबा बैजनाथ हैं।
जिनको न माता-पिता,
पुत्र-भाई संगी-साथी,
दयालु श्री गुरुवर, अनाथों के नाथ हैं।
गुरु मंत्र जपने से-
मिलती असीम शांति, अ
इनके हीं चरणों में, मेरे सोमनाथ हैं।
मथुरा में आए कृष्ण,
गोकुल में पले बढ़े,
वृंदावन राधे श्याम, पुरी जगन्नाथ हैं।
अमरकंटक शिव-
रहते औघडदानी,
काशी में जाकर बसे, भोले विश्वनाथ हैं।
किसकी मैं करूंँ पूजा,
मेरे कौन देब दूजा,
हमारे गुरुदेव तो, साक्षात् अमरनाथ हैं।
जैनेन्द्र प्रसाद ‘रवि’
