लेखनी-एस.के.पूनम

S K punam

सोच रही है लेखनी,

कहाँ से प्रारंभ करुँ,

फँस गया विचारों में,हो न जाए परिहास।

तूलिका भी डर रही,

कागज है निष्कलंक,

शब्दों की बुनाई ऐसी,पाठक को आई रास।

डंठल से जन्म हुआ,

चारु बनी तराश से,

संकल्पना के भाव मेंं,लिख रहा सदा खास।

जड़ित है स्वर्ण हीरा,

मिल गई पहचान, 

सोचा नहीं कभी कोई,रहेगा दिल के पास।

एस.के.पूनम

सेवानिवृत्त शिक्षक,फुलवा री शरीफ,पटना

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