महामानव
पाकर भी ऊँचा पद-
मिलता नहीं है यश,
कई ऐसे गुमनाम, होते हैं यहांँ इंसान।
घर से निकल कर-
अपने ही बल पर,
कुछ लोग दुनिया में, बनाते हैं पहचान।
किन्हीं को तो धन बल-
नहीं होता जन बल,
कर्तव्य के बल पर, मिलता है यश-मान।
झेल कर झंझावात-
विचलित नहीं होते,
नभ में चमकते हैं, बनकर दिनमान।
मानव के लिए राग,
रखते हैं अनुराग,
समाज मित्रों के लिए, देते हैं हमेशा जान।
खुद तो गरल पीते
दूसरे के लिए जीते,
ऐसे ही लोगों को प्यार, करते हैं भगवान।
ऐसे महामानव को-
लोग नहीं भुला पाते,
व्यक्तित्व को याद कर, करते हैं यशोगान।
कर्ण राजा शिवी जैसा,
हुआ नहीं कोई वैसा,
संसार में प्रसिद्ध है, दधीचि का अस्थि दान।
जैनेन्द्र प्रसाद ‘रवि’
म.वि. बख्तियारपुर, पटना
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