प्रभाती पुष्प
ममतामई मांँ
कलाई में शोभता है-
कंगन व बाजूबंद,
मनमोहता है देवी, माता का सिंगार है।
जिज्ञासु श्रद्धालु जन-
करते हैं आराधना,
जयकारा गूंज रहा, माता दरबार है।
आर्त-पापी या सवाली,
जाता नहीं कोई खाली,
माता रानी सुनती तो, भक्त की पुकार हैं।
डरो नहीं ‘रवि’ प्यारे-
संकट मिटेंगे सारे,
ममतामई के हाथों, सौंप पतवार है।
जैनेन्द्र प्रसाद ‘रवि’
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