मीठा-खारा-एकलव्य

मीठा-खारा 

दो तत्वों के मेल से
मैं जल बन जाता हूँ 
स्थान विशेष को पाकर
रूप बदल पाता हूँ।

मूल रूप से दो मैं होता
मीठा-खारा मैं कहलाता
पदार्थ तीन अवस्था का
सहज अवलोकन मैं करवाता।

सागर छोड़ जल सारा
मीठा मैं हूँ कहलाता
एक दो फ़ीसदी में ही
जग सींच मैं हूँ जाता।

उष्ण पा जलवाष्प बनूँ
संघनन-दाब पा, जलबून्द बनूँ
कुँए, गड्ढ़े, तालाब-नदी भर
जलचक्र मैं पूरा करूँ।

धारा नदी जल झील बनूँ
हिम बनूँ पर्वत ध्रुव पर
रिस कर धरती नीचे जाऊँ 
भौम जल मैं ही कहलाऊँ।

मीठा से खारा की गति
है, जल-चक्र से आगे बढ़ी
धरा चादर है ओढ़ रखी
जल स्तर कैसे मैं पाती।

नदी उथला, कुएँ-गड्ढे मृत
भौम जल को छीन किया
ग्लोबल वार्मिंग के कहर से
मीठा को खारा है किया।

तालाब कुँए उथले धारा को
पुनर्जीवित अब करना होगा
ताप नियंत्रित करके जग को
मीठा जल अब पाना होगा।

छोड़ रसायन जैविक अपनाओ
बूंद बचा सोख्ता बनवाओ
वृक्ष लगा जीवन को पाओ
खारा से मीठा को पाओ।

ध्यान तुम्हें ही रखना होगा
इतिहास दोहराव से बचना होगा
नहीं तो द्वारिका सागर में होगी
सागर तल जो उथला होगी।।

एकलव्य
संकुल समन्यवक
मध्य विद्यालय पोखरभीड़ा
पुपरी, सीतामढ़ी

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