मनहरण घनाक्षरी:- एस. के. पूनम

शीर्षक: कभी रथ खींचिए मंदिर की ओर चलें, मिलेगी जीने की राह, जय बोलो जगन्नाथ, नमन तो कीजिए। हजारों हैं तेरे नाम, अद्भुत हैं तेरे काम, उषाकाल नाम जपें, आशीष…

विधा- रूप घनाक्षरी: जैनेन्द्र प्रसाद रवि

किसान “”””””””””””””””” फसल बोने के पूर्व, खेतों की जुताई हेतु, सुबह ही चल देते, हल बैल ले के संग। हरियाली देख कर, चेहरे हैं खिल जाते, किसानों के हो जाते…

खुद मनुष्य बन, औरों को मनुष्य बनाओ- गिरीन्द्र मोहन झा

सदा कर्मनिष्ठ, सच्चरित्र, आत्मनिर्भर बनो तुम, जिस काम को करो तुम, उससे प्रेम करो तुम। नित नई ऊँचाई छूकर, सदा आगे बढ़ो तुम, यदि कर सको तो, जरुरतमंदों की मदद…

कभी घबराना नहीं – जैनेन्द्र प्रसाद रवि

रूप घनाक्षरी छंद तूफानों में नाव डोले, कभी खाए हिचकोले, धारा बीच माँझी चले, थाम कर पतवार। अवसर आने पर, जोर लगा आगे बढ़ें, मिलता है मौका हमें, जीवन में…

स्वर्ग नर्क कहीं और नहीं- नीतू रानी

स्वर्ग नरक कहीं और नहीं है इसी पृथ्वी पर सब, बैठके थोड़ा सोचिए जब समय मिलता है तब। इसी पृथ्वी पर जन्म लिए ऋषि मुनि‌और संत। राम, कृष्ण, माँ पार्वती…

भारत के प्राचीन ग्रंथ- गिरीन्द्र मोहन झा

वेद-वेदान्त की है उक्ति यही, सदा बनो निर्भीक, कहो सोsहं , उपनिषद कहते हैं, ‘तत्त्वमसि’, तुम में ही है ‘ब्रह्म’, तू न अकिंचन। ऋषि व्यास जी ने है रचा, शुभकर…