मन उड़ान जब भरे हृदय से – गीत (१६-१४)
तन सुवास भी उड़े गगन में, मन में सुंदर आस जगे।
मन उड़ान जब भरे हृदय से, सुरभित हर अहसास लगे।।
रहे चतुर्दिक सब आशाएँ, पुष्पित जीवन बाग सदा।
मंद-मंद मुस्कान अधर पर, इठलाती है मस्त अदा।।
आ जाती विश्वास रश्मियाँ, लगते हैं फिर सभी सगे।
मन उड़ान जब भरे हृदय से, सुरभित हर अहसास लगे।।०१।।
मनभावन पावन हो जाती, हर पद चंचल चाप सभी।
आनंदित होते हैं चितवन, सपने हो साकार तभी।।
सपनों को जब पर मिलता है, रह जाते हैं सभी ठगे।
मन उड़ान जब भरे हृदय से, सुरभित हर अहसास लगे।।०२।।
भेद हृदय में रहे नहीं तो, ईश्वर धाम बनाते हैं।
सद्कर्मों से फिर वह अपने, जग में नाम कमाते हैं।।
सौम्य सबेरा लाकर जग में, छोड़ चले तब चिह्न पगे।
मन उड़ान जब भरे हृदय से, सुरभित हर अहसास लगे।।०३।।
गीतकार:- राम किशोर पाठक
प्रधान शिक्षक
प्राथमिक विद्यालय कालीगंज उत्तर टोला, बिहटा, पटना, बिहार।
संपर्क – 9835232978
