बाल गीत, रामपाल प्रसाद सिंह

बाल गीत
मैं तो माॅंग सकूॅंगा बचपन।

आकर कोई पूछे हमसे,जो चाहो मैं दे दूॅंगा।
मैं तो माॅंग सकूॅंगा बचपन,और नहीं कुछ भी लूॅंगा।।

इतनी दुनिया गंदी होगी, मुझको ना विश्वास रहा।
बचपन छोड़ बढ़ा जब आगे,धन दौलत का दास रहा।।
जब भी मौका देंगे भगवन,बच्चा फिर से होऊॅंगा।
मैं तो माॅंग सकूॅंगा बचपन,और नहीं कुछ भी लूॅंगा।।

धन दौलत से बढ़कर दुनिया,में है तो फिर बचपन है ।
सीख मिली जब उम्र निकल गई,उम्र शेष अब पचपन है।।
आगे बढ़ना नहीं सुहाता, बचपन में फिर हो लूॅंगा।
मैं तो माॅंग सकूॅंगा बचपन,और नहीं कुछ भी लूॅंगा।।

फिर से बचपन की दुनिया में,सच्चा ही बन जाना है।
झूठ हमेशा नहीं सताए,बच्चा ही बन जाना है।।
सच बोलूॅं तो मार पड़ेगी, झूठ कभी ना बोलूॅंगा।
मैं तो माॅंग सकूॅंगा बचपन,और नहीं कुछ भी लूॅंगा।।

ईर्ष्या द्वेष भरे हैं जग में,बाल जगत में अर्थ नहीं।
आज लडूॅंगा कल भूलूॅंगा,समय बिताना व्यर्थ नहीं।।
चढ़ना कागज की नौका पर, कभी नहीं मैं भूलूॅंगा।
मैं तो माॅंग सकूॅंगा बचपन,और नहीं कुछ भी लूॅंगा।।

रामपाल प्रसाद सिंह अनजान
प्रभारी प्रधानाध्यापक
मध्य विद्यालय दरवेभदौर प्रखंड पंडारक पटना

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